महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद, पांडवों ने 36 वर्षों तक हस्तिनापुर पर शासन किया। इसके बाद, वे मोक्ष की प्राप्ति के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए। इस यात्रा को “महाप्रस्थान” कहा जाता है। महाप्रस्थान के दौरान द्रौपदी और पांडवों की मृत्यु का वर्णन महाभारत के स्वर्गारोहण पर्व में किया गया है।
द्रौपदी की मृत्यु
हिमालय की ओर यात्रा के दौरान सबसे पहले द्रौपदी गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुईं। युधिष्ठिर के अलावा अन्य सभी पांडव भी क्रमशः गिरते गए और उनकी मृत्यु हो गई। यह घटना द्रौपदी के जीवन के अंत का प्रतीक है।
मृत्यु का कारण
युधिष्ठिर ने भीम को द्रौपदी की मृत्यु का कारण बताया। युधिष्ठिर के अनुसार, द्रौपदी की मृत्यु का कारण उनका अपने पतियों में अर्जुन के प्रति अधिक प्रेम और पक्षपात था। उन्होंने कहा कि द्रौपदी ने पांचों पतियों में से अर्जुन को सबसे अधिक प्रेम किया और यह पक्षपात उनके गिरने और मृत्यु का कारण बना।
प्रतीकात्मकता
महाप्रस्थान और पांडवों की मृत्यु का यह आख्यान प्रतीकात्मक है। यह दर्शाता है कि मनुष्य अपने जीवन में किए गए कर्मों के अनुसार अपने जीवन के अंत में फल प्राप्त करता है। द्रौपदी की मृत्यु और उसके कारण का वर्णन यह सिखाता है कि पक्षपात और अनिश्चित प्रेम के कारण भी महान व्यक्तित्वों को कष्ट और संकटों का सामना करना पड़ सकता है।
अंतिम यात्रा
द्रौपदी के बाद, सहदेव, नकुल, अर्जुन, और भीम भी क्रमशः गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुए। अंततः, केवल युधिष्ठिर ही जीवित रह गए और उन्होंने स्वर्गारोहण के लिए हिमालय की यात्रा जारी रखी। उनके साथ उनका वफादार कुत्ता भी था, जो धर्म का प्रतीक था।
इस प्रकार, महाभारत के अनुसार, द्रौपदी की मृत्यु महाप्रस्थान के दौरान हिमालय की यात्रा करते हुए हुई और इसका कारण उनके जीवन में अर्जुन के प्रति अधिक प्रेम और पक्षपात को माना गया।
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