Religious beliefs and sculpture in Harappan civilization : हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता के धार्मिक विश्वास और मूर्तिकला का महत्वपूर्ण हिस्सा टेराकोटा की मूर्तियाँ हैं, जिन्हें मातृ-देवी के रूप में पूजा जाता था। हड़प्पा से प्राप्त इन मूर्तियों की संख्या बहुत अधिक है और ये सभ्यता की धार्मिक आस्थाओं का प्रमुख हिस्सा थीं। इन मूर्तियों का संबंध धरती की उर्वरता से जोड़ा जाता है। एक विशेष मुहर पर नग्न स्त्री को सिर झुकाए, दोनों पैर फैलाए दिखाया गया है और उसकी योनि से पौधा बाहर निकल रहा है, जो धरती माता की प्रतीक मानी जाती है। यह इस बात का संकेत है कि हड़प्पा लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे। विद्वान अलेक्जेण्डा आर्दिलेना जैनसन ने हड़प्पा की टेराकोटा कला का गहन अध्ययन किया और स्त्री-मूर्तियों में विभिन्नता पाई।
पुरुष देवता और पशुपति महादेव
हड़प्पा से एक पुरुष देवता की चित्रित मुहर भी मिली है, जिसमें वह योगी की ध्यान मुद्रा में एक टांग पर दूसरी टांग डाले बैठे दिखाए गए हैं। उन्होंने भैंसे के सिंह का मुकुट पहना है और वे चार पशुओं से घिरे हैं – हाथी, गैंडा, भैंस और बाघ। इनके नीचे एक भैंसा है और पांव पर दो हिरण। जॉन मार्शल ने इस देवता को “पशुपति महादेव” बताया, जो हिंदू धर्म के शिव देवता से मिलते-जुलते हैं। इस मुहर का चित्रण यह संकेत देता है कि हड़प्पा लोग एक शक्तिशाली पुरुष देवता की पूजा करते थे, जो पशुओं का संरक्षक माना जाता था।
लिंग और योनि की पूजा
हड़प्पा के लोग लिंग और योनि की पूजा भी करते थे, जो प्रजनन ऊर्जा के प्रतीक माने जाते थे। यह पूजा का संबंध स्त्री-पुरुष के प्रजनन शक्ति और सृजन से था। हड़प्पा काल में शुरू हुई यह पूजा आगे चलकर हिंदू समाज में भी लोकप्रिय हो गई। ऋग्वेद में लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है, जो इस प्राचीन परंपरा का प्रमाण है। हड़प्पा काल में पशु पूजा का भी प्रचलन था। कई पशु मुहरों पर अंकित मिले हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण एक सिंह वाले जानवर (यूनिकॉर्न) का चित्रण है, जो संभवतः गेंडा हो सकता है। इसके बाद कूबड़ वाले सांड का भी महत्वपूर्ण स्थान था।
धार्मिक प्रतीक और ताबीज
हड़प्पा से मिले सील, ताबीज और ताम्र पर वृक्ष, वनस्पति और पशुओं के चित्र धार्मिक उद्देश्य से बनाए गए थे। इनमें से कुछ चित्र पीपल के वृक्ष के हैं, जो आज भी पूजा जाता है। कई बार वृक्षों के भीतर से झांकते हुए चेहरों को दिखाया गया है, जो वृक्ष के देवता को चित्रित करने का प्रयास था। हड़प्पा के ताबीज बड़ी तादाद में मिले हैं, जो भूत-प्रेतों से बचने के लिए पहने जाते थे। अर्थवेद में भी अनेक तंत्र-मंत्र और जादू-टोने के जरिए भूत-प्रेतों को भगाने के लिए ताबीज बताए गए हैं।
पशु बलि और नर बलि की प्रथा
कालीबंगा की एक सिल पर सिंह वाले देवता के सामने एक पशु को खींच कर ले जाते हुए दिखाया गया है, जिसे कुछ लोगों ने पशु बलि प्रथा माना है। कालीबंगा से प्राप्त एक अन्य सिल पर एक ही स्त्री को दो पुरुष बलपूर्वक खींच रहे हैं और उनके हाथों में तलवार है। कुछ लोगों का मानना है कि यह नर बलि की प्रथा हो सकती है। हड़प्पा सभ्यता से जुड़े धार्मिक आस्थाओं का सबसे अच्छा उदाहरण कालीबंगा की यज्ञवेदियां या अग्निकुंड से मिलता है। हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी और सुरकोतदा में पाए गए कब्रों का अध्ययन किया गया है। इन कब्रों में शव को लिटा कर उत्तर की दिशा में गड्ढे या ईंटों के बने कब्र में दफनाया गया है। शवों के साथ भोजन, मृदभांड, औजार और आभूषण भी रखे जाते थे, जो धार्मिक उद्देश्य को दर्शाता है।
इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हड़प्पा के निवासी वृक्ष, पशु और मानव स्वरूप में देवताओं की पूजा करते थे। लेकिन वह अपने इन देवताओं के लिए मंदिर नहीं बनाते थे। हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक आस्थाओं का यह अनूठा चित्रण उस समय के समाज की गहरी आस्थाओं और परंपराओं को दर्शाता है। इस सभ्यता की धार्मिक आस्थाएं और पूजा पद्धतियां आधुनिक हिंदू धर्म के कई तत्वों की पूर्वज रही हैं, जो इस सभ्यता की महत्ता को और भी बढ़ा देती हैं।
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