सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty) का इतिहास

सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty) : प्राचीन भारत में कई प्रसिद्ध राजवंश हुए हैं जिन्होंने अपनी राजनीति तथा युद्धनीति के बल पर इस देश की समृद्धता तथा संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने में योगदान दिया। इन्हीं प्रमुख राजवंशों में एक था सातवाहन राजवंश (Satavahana Dynasty)। सातवाहन वंश के साम्राज्य की स्थापना का श्रेय राजा सीमुक को जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, सीमुक ने कण्व वंश की समाप्ति कर सातवाहन वंश की नींव रखी। सीमुक सातवाहन वंश के संस्थापक एवं प्रथम शासक के रूप में जाने जाते हैं। सातवाहन वंश के सबसे महान शासक के रूप में गौतमिपुत्र सातकर्णी माने जाते हैं, जिनका विवाह रानी नागनिका से हुआ था।

सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty)

सातवाहन वंश के प्रमाण

सातवाहन वंश के बारे में कई माध्यमों से इतिहासकारों को प्रमाण मिले हैं, जिसमें पुराण एवं अभिलेख आदि प्रमुख हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथ मत्स्य और वायु पुराण में सातवाहन वंश का विशेष वर्णन मिलता है। पुराणों में इसे आन्ध्र वंश भी कहा गया है। इसके अलावा पुरातात्विक साक्ष्य के रूप में सातवाहन वंश के बारे में कई अभिलेख एवं सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। इनमें रानी नागनिका द्वारा निर्मित नाणेघाट अभिलेख प्रमुख है।

नाणेघाट अभिलेख

रानी नागनिका का नाणेघाट अभिलेख पुणे के पास स्थित एक उत्कूण अभिलेख है और इसमें सातवाहन वंश की कई जानकारियां प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही नासिक के पांडव सैनी गुफा से प्राप्त अभिलेख भी सातवाहन वंश एवं उनके राजाओं की सही जानकारी उपलब्ध कराते हैं।

सातवाहन वंश का काल

इतिहासकारों के अनुसार सातवाहन वंश का शासन काल लगभग 200 से 300 वर्ष तक रहा। इस समय संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं का प्रचलन था। परंतु राजकीय भाषा के रूप में प्राकृत को स्थान प्राप्त था।

सातवाहन वंश के क्षेत्र

बताया जाता है कि सातवाहन वंश ने केंद्रीय दक्षिण भारत पर शासन किया था। परंतु पुरातात्विक साक्ष्यों को देखते हुए इनका प्रभुत्व वाला क्षेत्र पश्चिमी भारत के हिस्से माने जाते हैं। इसमें महाराष्ट्र के हिस्से आते हैं तथा महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित ‘प्रतिष्ठान’ उस समय सातवाहन वंश की राजधानी हुआ करता था।

सातवाहन वंश के शासक

सातवाहन राजवंश ने इस धरती को कई महान शासक दिए। प्रथम शासक के रूप में शिमुक का नाम आता है तथा अंतिम शासक के रूप में यज्ञश्री सातकर्णी का नाम आता है। सातवाहन वंश में कुल 9 राजाओं ने शासन किया, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध शासक के रूप में गौतमीपुत्र सातकर्णी को माना जाता है।

कार्य और उपलब्धियां

सातवाहन वंश के काल में ब्राह्मणों को दान देने की प्रथा चलाई गई, जिसमें उन्हें भूमि एवं जागीरें भी दान में दी जाती थीं। इसके अलावा इस वंश के शासकों ने चांदी, कांसे तथा तांबे के सिक्कों का भी निर्माण करवाया। अजंता और एलोरा की गुफाओं के निर्माण में भी सातवाहन वंश का योगदान माना जाता है।

गौतमीपुत्र सातकर्णी का इतिहास

सातवाहन वंश के सबसे महान राजा के रूप में गौतमीपुत्र सातकर्णी को जाना जाता है। सातकर्णी की माता गौतमी बालाश्री थीं तथा उन्हीं के नाम से सातकर्णी को जाना जाता है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि सातवाहन राजवंश मातृसत्तात्मक था। राजा सातकर्णी ने कई युद्ध जीते तथा शत्रुओं से अपने राज्य को सुरक्षित रखा। सातकर्णी ने सिक्के चलवाए तथा कई अभिलेखों का भी निर्माण किया। सातकर्णी की पत्नी का नाम रानी नागनिका था और इनके दो पुत्र भी हुए।

गौतमीपुत्र सातकर्णी की उपलब्धियां

नासिक प्रशस्ति लेख से यह जानकारी मिलती है कि सातकर्णी का प्रभुत्व वृहद क्षेत्र तक फैला हुआ था। उन्होंने कई युद्ध कर अपने राज्य क्षेत्र का विस्तार किया और शक, यवन आदि विदेशी आक्रमणकारियों से देश को सुरक्षित रखा। उनके शासन क्षेत्र में मालवा, कोंकण और गुजरात के भाग शामिल थे। उन्होंने खारवेल को भी जीत कर अपने राज्य में मिला लिया था।

नासिक शिलालेख के अनुसार गौतमीपुत्र सातकर्णी की आज्ञा का पालन सभी क्षेत्रों के राजा किया करते थे। साथ ही यह शिलालेख सातकर्णी द्वारा किए गए सैन्य अभियानों में प्राप्त विजय को बताता है। वेणकटक नामक नगर की स्थापना भी सातकर्णी ने की थी। नानेघाट शिलालेख, जो कि उनकी पत्नी नागनिका द्वारा बनवाया गया था, इसमें भी सातकर्णी द्वारा जीते गए सैन्य अभियानों के बारे में बताया गया है।

निष्कर्ष

सातवाहन वंश का इतिहास प्राचीन भारतीय संस्कृति और राजनीतिक संरचना को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वंश अपने समय में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत समृद्ध था। सातवाहन वंश के शासकों की नीतियों और उपलब्धियों ने भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है।

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