सिंधु घाटी सभ्यता: कांस्य युग
सिंधु घाटी सभ्यता का विकास ताम्र पाषाण युग में ही हुआ था, पर इसका विकास अपनी समकालीन सभ्यताओं से कहीं अधिक हुआ। इस काल में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम में 2500 ई.पू. से 1700 ईं पू. के बीच एक उच्च स्तरीय सभ्यता विकसित हुई जिसकी नगर नियोजन व्यवस्था बहुत उच्च कोटि की थी। लोग आपस में तथा प्राचीन मेसोपोटामिया और फारस से व्यापार करते थे। लोग प्रतिमा पूजन में विश्वास रखते थे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह हिन्दू संस्कृति का विकास क्रम था या उससे मिलती जुलती कोई अलग सभ्यता।
सिंधु घाटी सभ्यता (3300 – 1700 ई.पू.)
हड़प्पा संस्कृति विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। इसका विकास सिंधु नदी के किनारे की घाटियों में मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, चन्हुदडो, रंगपुर, लोथल, धौलाविरा, राखीगरी, दैमाबाद, सुत्कागेंडोर, सुरकोटदा और हड़प्पा में हुआ था। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।
हड़प्पा संस्कृति के स्थल
इसे हड़प्पा संस्कृति इसलिए कहा जाता है कि सर्वप्रथम 1924 में आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के हड़प्पा नामक जगह में इस सभ्यता के बारे में पता चला। इस परिपक्व सभ्यता के केंद्र स्थल पंजाब और सिन्ध में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ। इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अंतर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे।
नगर योजना
इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। ये नगर भवन जाल की तरह विन्यस्त थे, यानी सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था।
विशाल सार्वजनिक स्नानागार
मोहेंजोदड़ो का सबसे प्रसिद्ध स्थल विशाल सार्वजनिक स्नानागार है, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। यह ईंटों के स्थापत्य का एक सुंदर उदाहरण है। यह 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं। स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। पास के कमरे में एक बड़ा सा कुंआ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था। हौज़ के कोने में एक निर्गम है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था।
अन्न भंडार
मोहेंजोदड़ो की सबसे बड़ी संरचना है अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा है। हड़प्पा के दुर्ग में छह कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पांतों में खड़े हैं। हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है और इस पर दो कतारों में ईंट के वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं। फर्श की दरारों में गेहूं और जौ के दाने मिले हैं।
जल निकासी की व्यवस्था
मोहेंजोदड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। लगभग हर नगर के हर छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था। कालीबंगा के अनेक घरों में अपने अपने कुएं थे। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहां इनके नीचे मोरियां (नालियां) बनी थीं। अक्सर ये मोरियां ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकीं होती थीं। सड़कों की इन मोरियों में नरमोखे भी बने होते थे।
कृषि और पशुपालन
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेंहू पैदा करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है। इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई, इसी के नाम पर यूनान के लोग इसे “सिन्डन” कहने लगे। हड़प्पा सभ्यता कृषि प्रधान थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेंड़ और सूअर पाले जाते थे।
व्यापार
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। वे चकके से परिचित थे और संभवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे। ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी। बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार संबंध था।
राजनैतिक ढांचा
इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पा की विकसित नगर निर्माण प्रणाली, विशाल सार्वजनिक स्नानागारों का अस्तित्व और विदेशों से व्यापारिक संबंध किसी बड़ी राजनैतिक सत्ता के बिना नहीं हुआ होगा पर इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं कि यहां के शासक कैसे थे और शासन प्रणाली का स्वरूप क्या था।
धर्म
हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएं भारी संख्या में मिली हैं। एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। विद्वानों के मत में यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट संबंध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा। कुछ वैदिक सूक्तों में पृथ्वी माता की स्तुति है, किन्तु उनकों कोई प्रमुखता नहीं दी गई है। यहां मिले एक सील पर एक पुरुष देवता का चित्र मिला है। उसके सिर पर तीन सींग है और वह योगी की मुद्रा में पद्मासन में बैठा है।
शिल्प और तकनीकी ज्ञान
इस युग के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे कांसे के निर्माण से भली-भांति परिचित थे। तांबे तथा टिन मिलाकर धातुशिल्पी कांस्य का निर्माण करते थे। यहां सूती कपड़े भी बुने जाते थे। लोग नाव भी बनाते थे। मुद्रा निर्माण, मूर्तिका निर्माण के साथ बरतन बनाना भी प्रमुख शिल्प था।
लिपि और माप तौल
प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है। माप तौल के लिए बाट के तरह की कई वस्तुए मिली हैं। उनसे पता चलता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे 16, 32, 48, 64, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था।
अवसान
यह सभ्यता मुख्यतः 2500 ई.पू. से 1800 ई. पू. तक रही। इसके विनाश के कारणों पर विद्वान एकमत नहीं हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के अवसान के पीछे विभिन्न तर्क दिये जाते हैं जैसे बर्बर आक्रमण, जलवायु परिवर्तन, बाढ़ तथा भू-तात्विक परिवर्तन, महामारी, और आर्थिक कारण। ऐसा लगता है कि इस सभ्यता के पतन का कोई एक कारण नहीं था बल्कि विभिन्न कारणों के मेल से ऐसा हुआ।
इस प्रकार, सिंधु घाटी सभ्यता अपने समय की सबसे विकसित और उन्नत सभ्यताओं में से एक थी। इसके अद्वितीय नगर योजना, जल निकासी व्यवस्था, उन्नत कृषि और व्यापारिक संबंधों ने इसे एक महान सभ्यता के रूप में स्थापित किया। इसके पतन के बावजूद, इसके योगदान और आविष्कार आज भी महत्वपूर्ण हैं और इस सभ्यता का अध्ययन हमें प्राचीन मानव समाज के विकास को समझने में मदद करता है।
मेरा नाम सत्यम है। मेंने दिल्ली दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुऐशन किया हैं। मैं पिछले 4 सालों से न्यूज़ आर्टिकल्स लिख रहा हूँ। मुझे शिक्षा, बिजनेस, तकनीक और धर्म से जुड़ी खबरें लिखने में रुचि है।